भारत वीर पुरुषों के साथ ही वीरांगनाओं की भी भूमि रहा है. देश में अगर गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, लोपामुद्रा, अपाला और अरुंधति जैसी विदुषी महिलाएं हुई हैं. वहीं, रानी लक्ष्मीबाई, जैसी वीरांगनाएं भी इसी धरती पर पैदा हुई हैं, जिन्होंने अपने साहस और शौर्य के दम पर इतिहास की दिशा ही बदल दी. जहां मराठा और क्षत्रियों की वीरता की गाथाओं से इतिहास पटा पड़ा है तो सिख योद्धाओं के शौर्य और बलिदान की भी सैकड़ों कहानियां सुनी-सुनाई जाती हैं. आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम याद कर रहे हैं ऐसी ही एक सिख वीरांगना माई भागो को, जिन्होंने महज 40 सिख योद्धाओं के साथ मुगलों की 10 हजार सैनिकों की विशाल फौज को घुटनों पर ला दिया था.
माई भागो का जन्म अमृतसर के पास एक गांव में हुआ था. माई भागो इतनी वीर थीं कि सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त किया था. माई भागो की दो पीढ़ियों ने गुरुओं की सेवा की थी. माई भागो ने बचपन में गुरु अर्जन देव की शहादत और गुरु हर गोबिंद पर सेना के हमलों की कहानियां सुनी थीं. उनके परिवार में अक्सर गुरुओं और सिखों पर हमलों की बातचीत होती थी, जिसका असर माई भागो के दिमाग पर पड़ रहा था. इसी का नतीजा निकला कि माई भागो ने सिखों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाना अपना कर्तव्य मान लिया. जब वह बड़ी हुईं तो उनकी सोच मजबूत हुई और वह गुरु गोबिंद सिंह की अंगरक्षक बन गईं.
जंगल में जाकर खुद ही सीखी मार्शल आर्ट
गुरु गोबिंद सिंह ने जब 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की तो माई भागो ने आनंदपुर साहिब जाकर युद्ध कला और आत्मरक्षा का कौशल सीखने की इच्छा अपने पिता के सामने रखी. इस पर उनके पिता उन्हें गांव ले आए. उनका मानना था कि युद्ध लड़ना पुरुषों का काम है ना कि महिलाओं का. पिता की रोकटोक का माई भागो पर कोई असर नहीं हुआ. वह खालसा सेना में शामिल होने के बारे में सोचती रहीं. ब्रिटेन की सिख मिशनरी सोसायटी की एक रिपोर्ट कहती है कि गांव लौटने पर माई भागों ने मार्शल आर्ट सीखना शुरू कर दिया. उन्होंने हथियार के तौर पर भाले का चुनाव किया. वह गांव के नजदीकी जंगल में भाले से पेड़ों को छेदने का अभ्यास करती थीं.

माई भागो ने मुगलों के सिखों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ खड़ा होना अपना कर्तव्य माना. (Sikhiwiki)
मुगल सेना ने आनंदपुर की घेराबंदी की
माई भागो को मार्शल आर्ट का अभ्यास करते हुए काफी समय बीत गया था. इसी दौरान मुगलों की सेना ने आनंदपुर की घेराबंदी की. उस समय मुगल शासक औरंगजेब का दौर था. औरंगजेब ने देश में शरिया कानून लागू कर दिया था. औरंगजेब सिख धर्म में पुरुषों और महिलाओं को बराबर का दर्जा दिए जाने के खिलाफ था. औरंगजेब ने 1704 में गुरु गोबिंद सिंह को पकड़ने के लिए 10 लाख सैनिकों की विशाल सेना आनंदपुर भेजी. पंजाब के मुक्तसर साहिब शहर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, मुगल सेना ने आनंदपुर को 8 महीने तक घेरकर रखा. आनंदपुर में खाने-पीने की किल्लत होनी शुरू हो गई. ऐसे हालात में भी 10 हजार सिख योद्धा गुरु गोबिंद सिंह के साथ खड़ा रहा. हालांकि, 40 योद्धाओं ने आनंदपुर छोड़ने का फैसला कर लिया.
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मुगलों का गुरु गोबिंद सिंह को धोखा
मुगलों की 10 लाख सैनिकों की सेना तमाम कोशिशों के बाद भी गुरु गोबिंद सिंह के 10 हजार सिख सैनिकों से जीत नहीं पाई. ब्रिटेन की सिख मिशनरी सोसायटी की रिपोर्ट के मुताबिक, आखिर में मुगल सेना ले लिखित शपथ के साथ गुरु गोबिंद सिंह से समझौता किया कि अगर वह आनंदपुर छोड़ दें तो उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. लेकिन, गुरु गोबिंद सिंह के किले से बाहर आते ही मुगल सेनापतियों ने शपथ तोड़ दी और उन पर हमला कर दिया. गुरु गोबिंद सिंह को सिरसा नदी पार करते समय चमकौर में मुगल सेना से युद्ध लड़ना पड़ा. इसमें उनके दो बड़े बेटे शहीद हो गए. वहीं, काफी सिख योद्धा भी इस जंग में हताहत हो गए.
माई भागो ने इकट्इे किए 40 योद्धा
इधर जब माई भागो को पता चला कि गुरु गोबिंद सिंह आनंदपुर से निकलकर मालवा की तरफ आ रहे हैं तो उन्होंने गुरु को छोड़कर आए 40 सिख योद्धाओं को फिर से इकट्ठा किया. उन्होंने उन योद्धाओं से कहा कि गुरु गोबिंद सिंह ने हमारी रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया. क्या हम खुद लड़कर अपनी और अपनों की रक्षा नहीं कर सकते. उनके जोशीले भाषण सुनकर 40 सिख योद्धा मुगलों से लोहा लेने के लिए तैयार हो गए. माई भाग ने मौजूदा मुक्तसर झील पर मुगलों की सेना को रोकने की योजना बनाई. जब गुरु गोबिंद सिंह का पीछे करते हुए मुगलों की सेना इस झील पर पहुंची, तब माई भागो 40 सिख योद्धाओं के साथ झील के चारों ओर तैयार बैठी थीं.

माई भागो ने मुक्तसर झील पर मुगलों से खूनी संघर्ष किया और उन्हें घुटनों पर ला दिया.
माई भागो के सामने टिक नहीं पाई सेना
मुक्तसर झील पर 29 दिसंबर 1705 को भयंकर युद्ध हुआ. माई भागो ने 40 योद्धाओं के साथ मुगलों के 10,000 सैनिकों का खूब मुकाबला किया. माई भागो ने बिजली की रफ्तार से दुश्मनों को भेदते हुए भाले के साथ 40 सिख योद्धाओं का नेतृत्व किया. टीले से गुरु गोबिंद सिंह भी उनकी मदद करते रहे. मुगल सेना माई भागो के इस हमले के सामने टिक नहीं पाई. आखिर में घुटनों पर आई मुगल सेना पीछे हटती चली गई. इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल सेना अपने घायल सैनिकों को लावारिस छोड़कर भाग खड़ी हुई. हालांकि, इस जंग में माई भागो और 40 योद्धाओं में से सिर्फ महान सिंह ही जीवित बचे. गुरु गोबिंद सिंह ने उन बहादुर सिखों को ‘चाली मुक्ते’ यानी 40 मुक्त नाम दिया. बाद में माई भागो गुरु की अंगरक्षक बन गईं.
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FIRST PUBLISHED : March 8, 2024, 14:18 IST
