सियासत, साहेब और शहाब… मुस्लिम-यादव वोटर्स 5.5 लाख, फिर भी उलझा डॉलर इकोनॉमी सीवान का समीकरण!

ऐतिहासिक रूप में सीवान जिले की पहचान देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, मौलाना मजरूल हक और डॉ. सैय्यद मोहम्मद जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की जन्म धरती के रूप में है. लेकिन, आधुनिक समय में यह पहचान बदल गया है. बीते करीब तीन दशक से सीवान की राजनीति और सामाजिक परिवेश में एक नाम बहुत चर्चित रहा है. वो है पूर्व सांसद दिवंगत शहाबुद्दीन का. वह बीते करीब तीन दशक से सीवान और बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे हैं. मई 2021 में कोरोना के कारण उनके निधन के बाद बीते तीन दशक में पहली बार उनके बिना इस बार सीवान में संसदीय चुनाव हो रहा है.

सीवान की जनता उनको ‘साहेब’ नाम से जानती रही है. 2021 में निधन से पहले वह लंबे समय तक जेल में रहे. लेकिन, जेल में रहते हुए भी वह सीवान की राजनीति को प्रभावित करते रहे. उनकी छवि एक बाहुबली सांसद की रही. उन पर कई संगीन आपराधिक मुकदमें दर्ज थे. सीवान और बिहार की राजनीति में उनके प्रभाव की बात किसी से छिपी नहीं है.

राजद के एक सबसे प्रभावी और बाहुबली नेता रहे शहाबुद्दीन सीवान संसदीय सीट से चार बार सांसद रहे. वह 1996 से 2004 तक लगातार पार्टी का परचम बुलंद करते रहे. वह राजद सुप्रीमो लालू यादव के बेहद करीबी माने जाते थे. कोरोना काल में उनके निधन के बाद भी सीवान की फिजा में उनके नाम पर राजनीति होती रही. कोई उनके द्वारा किए विकास पर तो कोई उनके अपराध पर राजनीति करता है. विपक्ष की जुबान पर शहाबुद्दीन का नाम आज भी हर समय रहता है.

सीवान का जातीय समीकरण
रिपोर्ट के मुताबिक सीवान में करीब तीन लाख मुस्लिम, 2.5 लाख यादव, 1.25 लाख कुशवाहा और 80 हजार के आसपास साहनी मतदाता हैं. इसके अलावा अगड़ी जाति के करीब चार लाख और 2.5 लाख ईबीसी मतदाता हैं. जब शहाबुद्दीन यहां की राजनीति में हावी थे तब उनका प्रभाव हर जातीय समूह के उच्च तबके में अच्छा-खासा था. साथ ही उनको राजद के ठोस वोट भी मिलते थे.

सीवान एक डॉलर इकोनॉमी वाला जिला है. यहां के हिंदू-मुस्लिम सभी तबके के लोग बड़ी संख्या में विदेश खासकर खाड़ी के देशों में काम करते हैं. कई गांव और कस्बे ऐसे हैं जहां के घरों में आपको युवा लोग बहुत कम मिलेंगे. ये सभी विदेश रहते हैं. विदेशी पैसे की वजह से जिले के बाजारों में खूब रौनक रहती है.

विधानसभा में राजद का वर्चस्व
सीवान जिले में विधानसभा की आठ और लोकसभा की दो सीटें- सीवान और महाराजगंज हैं. महाराजगंज में सीवान की दो और सारण की चार विधानसभाएं शामिल हैं. इन आठ विधानसभाओं में दो पर भाजपा, दो पर भाकपा माले, एक पर कांग्रेस और तीन पर राजद के उम्मीदवार विजयी हुए थे. यानी आठ में से छह पर महागठबंधन का कब्जा है.

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दो बार विधायक और 4 बार सांसद
मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 1980 के दशक में जिले के प्रतिष्ठित डीएवी पीजी कॉलेज से ही राजनीति में प्रवेश किया. कॉलेज के दिनों में ही 1986 में उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हुए. फिर वे जेल गए. जेल में रहते हुए वर्ष 1990 में वह जीरादेई निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार बिहार विधानसभा के लिए निर्दलीय निर्वाचित हो गए. वह 1995 तक विधायक रहे. इस दौरान उनकी लालू प्रसाद यादव से मुलाकात हुई और वह राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए. राजद के टिकट पर 1995 में दूसरी बार विधायक चुने गए. फिर 1996 में विधायकी छोड़कर उन्होंने सांसदी का चुनाव लड़ा.

वर्ष 1996 में वह राजद के टिकट पर 11वीं लोकसभा के लिए चुने गए. वह पहली बार सांसद बने. इसके बाद उनका कद राष्ट्रीय स्तर पर हो गया. इसके बाद उन्होंने साल 1998 में 12वीं लोकसभा, 1999 में 13वीं लोकसभा और 2004 में 14वीं लोकसभा जीतकर 2009 तक सांसद रहे. हालांकि, 15वीं लोकसभा चुनाव से पहले उनको कुछ मुकदमों में सजा हुई और चुनाव आयोग ने उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया.

इसके बाद पत्नी हिना शहाब उनकी राजनीति पारी संभालने के लिए आगे आईं. राजद ने भी उन्हें 2009, 2014 और 2019 तीन बार सीवान संसदीय सीट से टिकट दिया. 2009 में निर्दलीय उमीदवार ओमप्रकाश यादव ने उन्हें 63,000 हजार वोटों से हरा दिया था. ओमप्रकाश यादव लंबे समय से सीवान को शहाबुद्दीन के प्रभाव से मुक्त कराने के लिए सड़क पर लड़ रहे थे. कई बार उन पर हमले हुए थे. फिर उनके संघर्ष पर जनता ने भरोसा किया और 2009 में वह सांसद चुने गए. इसके बाद ओमप्रकाश यादव भाजपा में शामिल हो गए. वर्ष 2014 में भाजपा के टिकट पर वह दोबारा सांसद बने. उन्होंने एक लाख से भी ज्यादा वोटों से हिना को हरा दिया. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से एनडीए की उमीदवार कविता सिंह ने 1,16,958 वोटों से हिना को पराजित किया.

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हिना का प्रभाव
हिना शहाब के साथ आज भी एक बड़ा वोट बैंक है. शहाबुद्दीन के भरोसेमंद लोग आज भी उनके साथ हैं. बावजूद इसके वह तीन बार से लगातार लोकसभा चुनाव हार रही हैं. इधर कुछ समय से उनकी राजद नेतृत्व से कुछ दूरियां भी बढ़ने की खबर आ रही है. पिछले दिनों सीवान में तेजस्वी की जनसंवाद यात्रा में वह मंच पर नहीं दिखीं. इस बारे में पूछने पर वह कहती हैं कि उनको किसी दूसरे कार्यक्रम में जाना था. वह उसमें बिजी थीं. 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर हालांकि हिना ने अभी तक कुछ नहीं कहा है. उन्होंने अपना पत्ता नहीं खोला है. ऐसा लगता है कि वह राजद नेतृत्व के फैसले का इंतजार कर रही हैं. वह किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगी, इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. वह काफी सक्रिय हैं. जनता के बीच खूब दौरा कर रही हैं.

Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections

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Author: Udan Live

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